अफसोस बस इतना है,
अगर सच पता चल जाए एक लड़की को,
कि वो किसलिए है धरती पर आईं है,
शायद वो कभी इन उलझनों में फसे ही ना।
जो समझाया गया है आज तक।
हर खामोशी ने उसे बस यही समझाया
यही होना है तेरा चाल चलन
अगर वो बोल भी पड़े की मुझे बोलना है,
तो समझाया जाता है , यही रहेगा तेरा सफर।
जो तुझे मिल जाए जुबान तो तू संसार बदल देगी,
इसीलिए खामोश रह , बदलाव की भाषा सही नहीं।
अफसोस मुझे भी है, मै भी उसी समाज में रहती हूं,
जिसने मुझे बचपन से यही सिखाया है।
हर रोज जो माँ ये कहती है,
मैने थोडी ना भेदभाव सिखाया है।
तो माँ तू बस इतना बाता,
कि क्यों ?इतनी अलग है,मेरी और मेरे भाई की जिंदगी।
क्यों? ऐसा मुझे लगा, कि मै कभी तेरी संतान नहीं।
क्यों? इतना अलग रहा उसका और मेरा रहना सहन भी।
क्यों? मुझे तूने हर काम सिखाया की,
कि तेरी इज्ज्जत लेके, मै दूसरे घर जाऊंगी।
और वो मेरा भाई इस घर पर रहेगा,
तो उसको कोई जरूरत नहीं थी,
उस इज्जत को अपने सिर उठाने की
,क्योंकि वो किसी और के घर की इज्जत लाएगा, तेरे घर पर ही।
और जो आ गई मै उस घर पर वापस
तो तू मुझे कहा अपनाएगी।
पर मां सच बता पाएगी,क्यों झूठ बोलती रही तू, तूने कोई भेदभाव नहीं किया
तूने ही मुझे सिखाया हर छोटी बड़ी समाज कि सोच को,
मैं तो लड़की थी , पराया धन थी।
फिर भी मां तेरी और पापा की इज्जत मेरे सिर पर थी ।
अरे ! कोशिश तो की होती अपना धन समझने की शायद ,
एक नया समाज बनता देखती तू मां।
मैने खामोश रहने की कोशिश बहुत की थी,सोचती थी जैसा तू सिखाती है वैसा ही करूंगी,
पर माफ करना , मुझसे ये खामोशी सही नहीं जा रही,
ये अंदर ही अंदर मुझे खाई जा रही है,
मुझे अफसोस हुआ कि मै तेरे कहने पर ना चल सकी।
मां अब भी वक़्त है, इज्जत तेरी, तेरा लाल ही करेगा,जो नारी का सम्मान करेगा ,
अगर ये ना करे जो वो।तो अफसोस इसी बात का है,
वो किसी और की घर इज्जत नीलम करेगा।
और जो तूने उसे फिर भी अपना कंधा दिया,तो जाने कितना सर्वनाश करेगा।
फिर भी मां तू फिकर ना कर , ये समाज ही उसे बचाएगा,
वो उस इज्जत को डराएगा, धमकाएगा और जो जरूरत आन पड़ी तो
जाने कहा उसे जलाएगा, उससे ख़तम कर जाएगा
वो लोग गिर गिड़ते रहे , और भूल भी जाएंगे,
पर अफसोस इलज़ाम तो उस लड़की पर ही लग जाएगा
क्योंकि सारा कसूर ये समाज उस इज्जत का,
उस बेटी के सर पर ही थोपाने जाएगा।
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