हां थोड़ी , बहुत सी है
नादानियां जो दिल में है
गिनवाऊ तुझे कैसे मै
जो पल भर के लिए मेरे साथ है
फिर उज़ला सा ख्वाब है
बिन बोले गुमसुम सी है
मनमौजी पागल भी है
जाने तू या जाने ना ये
क्यों अजनबी सी
मै हो रही हूं
खुद कि तलाश में
मनमौजी सी हो रही हूं
तेरी हर बात में
कि सुन ले तू मुझे
बिन कहीं सी हर बात में
कि जान ले फिर मुझे
उन बिन बोली बात में
कि ठहर जाऊ मैं
अपनी इस तलाश में
कहीं खो ना जाऊ
इस अजनबी से सफर में
Categories: Poetry
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